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कर्तृत्वातून सिद्ध झालेलं नेतृत्व म्हणजे आमदार गोपीचंद पडळकर साहेब... ✍️ लेखन- नितीनराजे अनुसे

कर्तृत्वातून सिद्ध झालेलं नेतृत्व म्हणजे आमदार गोपीचंद पडळकर साहेब ✍️ लेखन - नितीनराजे अनुसे नेता कोणत्या पक्षाचा आहे, कोणत्या समाज...

Sunday, 3 December 2017

एक ऐसा महान भारतीय शासक इतिहास के पन्नो मे खोया...

              महाराजा छत्रपती यशवंतराव होलकर सुभेदार तुकोजी होलकर का चौथा पुत्र था। उनका जन्म पुना (पुणे) जिले मे खेड तहसिल इलाखें स्थित वाफगाव में ३ दिसंबर १७७६ मे हुआ था। वह उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था। पिताजी सुभेदार तुकोजी महाराज की मृत्यु पर (1797) उत्तराधिकार के प्रश्न पर काशिनाथराव होलकर जो अपाहीज था उसको उकसाकर होलकरोंकी दौलत मुठी मे करने की चाहत रखनेवाले दौलतराव शिंदे के हस्तक्षेप तथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के वध (1797) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने खुद की फौज बनाना शुरू किया और अपने युद्ध कौशल को प्रेरित करते हुए शुन्य से विश्व निर्माण कर के शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी। इंदौर और महेश्वर स्थित अहिल्या बाई होलकर का संचित कोष हाथ आ जाने से 1800ई के बाद उसकी शक्ति और भी बढ़ गई। पुणे स्थित शनिवारवाडा के सामने पेशवा और बालाजी विश्वनाथ ने यशवंतराव होलकर का बडा भाई विठोजीराव होलकर की क्रुर हत्या कर दी दी उसके कारण और अपने परिवार (जो शिंदे के कैद मे थे।) को छुडाने के कारण 1802 में उसने पेशवा तथा शिंदे को सम्मिलित सेना को पूर्णतया पराजित किया था। जिसमे शिंदे और पेशवा के सैनिकों को बहुत ही भारी नुकसान पहुंचा था। हडपसर से लेकर वानवडी और पार्वती तक शिंदे और पेशवा के सैनिकों को अकेले के दम पर मार गिराकर महाराजा यशवंतराव होलकर ने अपनी युद्ध कला दिखाई थी और खुद एक महायोद्धा के रूप में स्थापित किया था। आज भी माना जाता है की उस युद्ध मै पेशवा और शिंदे की सेना की इतनी हड्डीयां गिरी थी की इसके पाश्चात उस इलाखें का नाम हडपसर रखा गया। मानते है की मराठी सैन्य आपस में लढे जिसमें मराठी सेना का ही नुकसान हुवा और यशवंतराव ने पुना (पुणे) जलाकर रख दिया। लेकीन सोचनेवाली बात ये है की अगर अपने परिवार वालों को बिना बजह से कोई बंदी बना ले और लाख कोशिश और बिनती करने के बावजूद भी ना छोडे तो महाराजा यशवंतराव होलकर ही क्या उसी जगह आप मे से भी कोई होता तो अन्याय के खिलाफ जरूर शस्त्र उठा लेता। यशवंतराव होलकर ने भी यही और सही किया था। लेकीन मतलबी और जातीयवादी इतिहासकारों ने छत्रपती यशवंतराव होलकर को बंडखोर और लूटमार करनेवाला कहलाया। अपनी फौज की चारापानी के लिए पैसा जमा करना, राज्य की रक्षा करना यही फौज का कर्म और धर्म था और वही धर्म यशवंतराव होलकर ने निभाया था जो की किंतू उसके लिए नही बल्कि फौज और राज्य के लिए सहीं था। नहीं तो छत्रपती शिवाजी महाराज ने भी जिसे आज भारत का मॅंचेस्टर करते है उस सुरत (गुजरात) शहर की लुटमार की थी तो शिवाजी महाराज को भी चोर कहोगे क्या? उपरसे पेशवा महाराजा यशवंतराव होलकर की लाखों की सेना को कोई निधी पुंजी नहीं देता था तो सैनिक कैसे लढेंगे ? घोडे हत्ती के लिए चारा कहां से लाए? और बडे भाई विठोजीराव होलकर घिनौनी तरीके से जो क्रूर हत्या कर दी उसका कारण पुछने के लिए और शिंदे ने कैद किये हुये माॅ यमुनाबाई, पत्नी लाडाबाई, कन्या भिमाई और मल्हारराव द्वितीय का पुत्र खंडेराव इस अपने परिवार  को साथ लेकर जाने के लिए आये हुये यशवंतराव के सामने शिंदे और पेशवा अपने सेना खडी कर दी जिसमे शिंदे और पेशवा का पराभव हुवा। जिससे पेशवा ने कोकण भागकर अपनी जान बचाई और उसके बाद बसई भागकर अंग्रेजों से संधि की (31 दिसम्बर 1802)। उसके बाद फलस्वरूप द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध छिड़ गया। शिंदे से वैमनस्य के कारण मराठासंघ छोड़ने में यशवंतराव ने बड़ी गलती की क्योंकि भोंसले तथा शिंदे क पराजय के बाद, होलकर को अकेले अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा। महाराजा यशवंतराव होलकर ने मॉनसन पर 1804 मै विजय पाई जिससे अंग्रेजों की पैर के निचेसे जमिन खिसक गई। उसके बाद माल्कम, डूडरनेक जैसे ब्रिटिश अधिकारी और उनकी सेना को एक एक करके श्रीमंत सुभेदार राजे मल्हारराव होलकर की युद्धनिती को सामने रखकर अंग्रेज फौज को ऐसा चून के मारा की अंग्रेज अधिकारी यशवंतराव होलकर के सामने घुटने टेकने लगे। अकेले दम पर अजिंक्य कहलानेवाले ब्रिटिश सेना को अपनी तलवार का ऐसा पानी चखाया जिससे खुद माल्कम ने लिख राखा है की अकेले दम पर लढनेवाला यशवंतराव होलकर जैसा महासोद्धा पुरी दुनिया मे ढुंढकर भी नही मिलेगा। क्यूंकि यशवंतराव होलकर को खुद राजा नही बनना था लेकीन सुभेदार तुकोजीराव होलकर का वारीस होवो के नाते वे मल्हारराव होलकर (द्वितीय) का पुत्र खंडेराव होलकर( द्वितीय) के नाम पर राजगादी और प्रजा की रक्षा करना चाहता था लेकीन अपने ही लोग उनकी टांग खिंचते थे इसलिए यशवंतराव होलकर अस्वस्थ थे।
                 महाराजा यशवंतराव होलकर एक ऐसा योद्धा था जो दूरदृष्टी याने की अानेवाले समय की सोच रखता था। ब्रिटिश सेना व्यापार के तौर पर हिंदूस्थान मे आकर अपना राज्य स्थापित करना चाहती थी। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ लढने के लिए महाराजा यशवंतराव होलकर ने हिंदूस्थान के सारे राजा महाराजाओं से मदत माॅंगी थी लेकीन किसी ने भी उसका साथ नही दिया। फिर उन्होने शिख और इस्लामी राजाओ के सामने धर्म बदलाव का प्रस्ताव भी रखा लेकीन कुछ फायदा नही हुआ क्यूंकि बाकी सारे राजामहाराजा खुद को अंग्रेजो के प्रति बिक चुके थे। अंग्रेजों को करारा जवाह देने के लिए महाराजा यशवंतराव होलकर ने भारी वजन और तेजी से निशाने पर मारा करनेवाली तोफ बनाने की फैक्टरी डाली जो भानपुरा मे है। महाराजा यशवंतराव होलकर ने अंग्रेजों के खिलाफ कुल 18 युद्ध किये जिसमे अंग्रेजो को पराजित करते हुये सारे सारे के युद्ध यशवंतराव होलकर ने अकेले दम पर प्राणों की बाजी लगाते हुए जित चुके थे। तभी तो अजिंक्य कहलाने वाले अंग्रेज सेना की धज्जीयाॅ उडातर उनकी लज्जा (इज्जत) दुनिया की द्वार पर टांगनेवाला महाराजा छत्रपती यशवंतराव होलकर ही था। अंत में, पूर्ण विक्षिप्तावस्था में, तीस वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई (28 अक्टूबर 1811)।
             एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी।
इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - महाराजाधिराज राजराजेश्वर छत्रपती यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है।
पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया।
इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए।
इस दौरान अंग्रेज भारत में तेजी से अपने पांव पसार रहे थे। यशवंत राव के सामने एक नई चुनौती सामने आ चुकी थी। भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना। इसके लिए उन्हें अन्य भारतीय शासकों की सहायता की जरूरत थी। वे अंग्रेजों के बढ़ते साम्राज्य को रोक देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने नागपुर के भोंसले और ग्वालियर के सिंधिया से एकबार फिर हाथ मिलाया और अंग्रेजों को खदेड़ने की ठानी। लेकिन पुरानी दुश्मनी के कारण भोंसले और सिंधिया ने उन्हें फिर धोखा दिया और यशवंतराव एक बार फिर अकेले पड़ गए।
उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया।
11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी।
अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। इसके बाद अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। इसके बावजूद यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया।
वे सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ने का एक और प्लान बनाया। उन्होंने सिंधिया को खत लिखा, लेकिन सिंधिया दगेबाज निकले और वह खत अंग्रेजों को दिखा दिया।
इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए।
इस तरह से एक महान शासक का अंत हो गया। एक ऐसे शासक का जिसपर अंग्रेज कभी अधिकार नहीं जमा सके। एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोंक दिया। यदि भारतीय शासकों ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक महान शासक यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया और खो गई उनकी बहादुरी, जो आज अनजान बनी हुई है। चक्रवर्ती सम्राट ययाति, आद्यसम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, चक्रवर्ती सम्राट राजा अशोक, श्रीमंत राजे मल्हारराव होलकर, चोल, होयसळ, हक्क-बुक्क राय, यादव राजे जैसा ही धनगर समाज में जनम लेने वाला छत्रपती महाराजा यशवंतराव होलकर एक बहादुर एकमेवाद्वितीय महायोद्धा था जिनकी तुलना नेपोलियन बोनापार्ट ये की गई है लेकीन नेपोलियन बोनापार्ट और छत्रपती महाराजा यशवंतराव होलकर समकालीन थे। नेपोलियन बोनापार्ट का जनम १५ अगस्त १७६९ मे हुआ और मृत्यू ५ मई १८२१ मे जब की छत्रपती महाराजा यशवंतराव होलकर का जनम ३ दिसंबर १७७६ और मृत्यू २८ अक्तूबर १८११ में हुई थी। इससे अनुमान लगाया जा सकता है की यशवंतराव होलकर नेपोलियन बोनापार्ट से प्रेरित नही हुये थे बल्कि नेपोलियन बोनापार्ट ही छत्रपती महाराजा यशवंतराव होलकर से प्रेरित हो गया होगा।
ऐसे जिगरबाज बहादुर रणसम्राट को सम्राटों का सम्राट याने चक्रवर्ती कहा जाता है, उस चक्रवर्ती सम्राट महाराजाधिराज राजराजेश्वर छत्रपती महाराजा यशवंतराव होलकर की आज २४२ वी जन्मशताब्दी है। उनकी कार्यनिष्ठा, युद्धकुशलता, राष्ट्रभक्ति और शुरविरता को तहे दिल से विनम्र अभिवादन करता हू।
जय मल्हार! जय अहिल्या! जय यशवंत!!
       ✍️नितीनराजे अनुसे✍️
अनुसेवाडी ता.आटपाडी जि.सांगली
           +917666994123
Email :- nitsanuse123@gmail.com
https://nitinrajeanuse123.blogspot.in

3 comments:

  1. जय यशवंतराजे।

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  2. Sanjiokumar marotrao kharat pl.no.54 meshram layout beltarodi road beds Nagpur-37 mo.no.9822473109 Hattkhor Dhangar

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